परिचय-
संसार में किसी भी प्राणी को अगर कुछ दिन तक भोजन या पानी न दिया जाए तो वो कुछ भी करके कुछ दिन तक ज़िंदा रह सकता है। लेकिन अगर संसार में हवा न हो तो किसी भी प्राणी के लिए एक मिनट भी सांस लेना मुश्किल होता है। आयुर्वेद के मुताबिक वात, पित्त और कफ अगर शरीर में संतुलित रहता है तो शरीर बिल्कुल स्वस्थ रहता है जैसे ही ये तीनों असंतुलित होते है तो शरीर में रोग पैदा हो जाते हैं। जब वायु शरीर में समा जाती है तब ही शरीर स्वस्थ रहता है। अच्छे स्वास्थ्य और शांति के लिए शरीर के अंदर वायु का संतुलन होना जरूरी है। आयुर्वेद के मुताबिक शरीर के अंदर 84 तरह की वायु है। वायु चंचलता की निशानी है। वायु की विकृति मन की चंचलता को बढ़ाती है। मन को एक ही जगह स्थिर रखने में वायु-मुद्रा का इस्तेमाल किया जाता है।
मुद्रा बनाने का तरीका-
अपने हाथ की तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगाने से वायु मुद्रा बन जाती है। हाथ की बाकी सारी उंगलियां बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए।
आसन-
वायु-मुद्रा में वज्रासन की तरह दोनों पैरों के घुटनों को मोड़कर बैठ जाएं। लेकिन रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए और दोनो पैर अंगूठे के आगे से मिले रहने चाहिए। एड़िया सटी रहें। नितम्ब का भाग एड़ियों पर टिकाना लाभकारी होता है। जिन लोगों को भोजन न पचने का या गैस का रोग हो उनको भोजन करने के बाद 5 मिनट तक आसन के साथ इस मुद्रा को करना चाहिए।
लाभकारी-
वायु मुद्रा का इस्तेमाल करने से ध्यान में मन की चंचलता कम होती है। प्राण वायु सुषुम्णा नाड़ी में बहने लगती है।
इस मुद्रा को करने से गठिया, साइटिका, गैस का दर्द और लकवा आदि रोग दूर होते हैं।
वायु मुद्रा के रोजाना इस्तेमाल से शरीर में गैस के कारण होने वाला दर्द समाप्त हो जाता है।
इस मुद्रा को करने से घुटनों और जोड़ों में होने वाला दर्द समाप्त हो जाता है। कमर, रीढ़ और शरीर के दूसरे भागों में होने वाला दर्द भी धीरे-धीरे दूर हो जाता है।
वायु मुद्रा से गर्दन में होने वाला दर्द कुछ ही समय में चला जाता है।
वायु मुद्रा के और अच्छे परिणाम पाने के लिए इसको करने के बाद प्राणायाम करें।
विशेष-
एक्यूप्रेशर चिकित्सा के मुताबिक हाथ की तर्जनी उंगली में रीढ़ की हड्डी के खास दाब बिंदु है। इनको दबाने से रीढ़ की हड्डी के सारे रोग दूर हो जाते है और रीढ़ की हड्डी मजबूत हो जाती है। अंगूठें की जड़ में जहां तर्जनी उंगली को रखतें है वहां गले के खास भागों के संवादी बिंदु है। इनके दबाव से पूरा शरीर संतुलित और स्वस्थ होता है। इसके असर से व्यक्ति की पर्सनेलटी में चमक आती है।
सावधानियां-
इस मुद्रा को करने से शरीर का दर्द कम हो जाता है इसलिए व्यक्ति सोचता है कि इस मुद्रा को ज्यादा से ज्यादा करें लेकिन इसको ज्यादा करने से लाभ की बजाय हानि हो सकती है।
वायु मुद्रा को करने से जब दर्द हल्का हो जाए या वायु कम हो जाए तो इस मुद्रा को करना बंद कर देना चाहिए।
प्राण मुद्रा एक अत्यधिक महत्वूर्ण मुद्रा है| रहस्यमय है जिसके संबंध में ऋषि-मुनियों ने अनन्तकाल तक तप, स्वाध्याय एवं आत्मसाधना करते हुए कई महत्वपूर्ण अनुसंधान किए हैं| इसका अभ्यास प्रारंभ करते ही मानो शरीर में प्राण शक्ति को तीव्रता से उत्पन्न करनेवाला डायनमो चलने लगता है| फिर ज्यों-ज्यों प्राण शक्ति रूपी बिजली शरीर की बैटरी को चार्ज करने लगता है, त्यों-त्यों चेतना का अनुभव होने लगता है| प्राण शक्ति का संचार करनेवाली इस मुद्रा के अभ्यास से व्यक्ति शारीरिक व मानसिक दृष्टि से शक्तिशाली बन जाता है|
• ज्योतिष के हिसाब से सूर्य की अंगुली अनामिका समस्त विटामिन और प्राण शक्ति का केंद्र मानी जाती है| बुध की उंगली कनिष्ठिका युवा शक्ति व कुमारावस्था का प्रतिनिधित्व करती है अर्थात् इस मुद्रा में सूर्य-बुध की उंगलियों का अग्नि (तेज) के प्रतीक अंगूठे के साथ महत्वपूर्ण प्रयोग है| इस मुद्रा के अभ्यास से जीवन और बुध रेखा के दोष दूर होते हैं| शुक्र के अविकसित पर्वत का विकास होने लगता है|
इस मुद्रा में पृथ्वी तत्व के प्रतीक अनामिका व जल तत्व की प्रतीक कनिष्ठिका का अंगूठे अर्थात् अग्नि तत्व से मिलन होता है| इसके परिणामस्वरूप न केवल शरीर में प्राण शक्ति का संचार तेज होता है बल्कि रक्त संचार उन्नत होने से रक्त नलिकाओं की रुकावट होती है तन-मन में नवस्फूर्ति, आशा एवं उत्साह उत्पन्न होता है| यदि योग-साधना या महीनों लम्बी तपस्या के दौरान अन्न-जल न लेने से अत्यंत कृशता या कमजोरी महसूस हो रही हो तो ऐसी स्थिति में प्राण मुद्रा करने से साधक को भूख-प्यास की तीव्रता नहीं सताती| कुल मिलाकर यह मुद्रा समस्त गड़बड़ियां दूर करके शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहायता करनेवाली है|
बहुत अच्छा आर्टिकल है. क्या आप मुझे ब्लॉग पर फॉलो कर सकते हैं.
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