Wednesday, July 11, 2012

विद्यार्थी-जीवनमें प्रार्थनाका महत्त्व

बालको, विद्यार्थी-जीवनमें प्रार्थनाका महत्त्व समझ लें !

‘प्रार्थना, अर्थात देवताकी शरण जाकर अपनी कामनापूर्तिके लिए याचना करना । प्रार्थनासे देवताके आशीर्वाद, शक्ति एवं चैतन्यका लाभ मिलता है । प्रार्थनाके कारण चिंताएं न्यून होती हैं, देवताके प्रति श्रद्धा बढती है तथा मन एकाग्र होता है । प्रार्थनासे अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षा भी होती है ।
प्रार्थनाओंके कुछ उदाहरण
प्रात: समय की जानेवाली प्रार्थना
करदर्शन : दोनों हाथोंकी अंजुलि बनाकर उसपर मन एकाग्र कर निम्न श्लोक बोलें -
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गोविंदः प्रभाते करदर्शनम् ।।
अर्थ : हाथके अग्रभागमें लक्ष्मी वास करती हैं । हाथके मध्यभागमें सरस्वती हैं एवं मूल भागमें गोविंद हैं; इसलिए सुबह उठते ही हाथोंके दर्शन लें ।
उपरोक्त श्लोक बोलनेके उपरांत धरती मांको निम्न प्रकारसे प्रार्थना कर भूमिपर चरण रखें ।
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमंडले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ।।
अर्थ : समुद्ररूपी वस्त्र धारण करनेवाली, पर्वतरूपी स्तनयुक्त एवं भगवान श्रीविष्णुकी पत्नी, हे पृथ्वीदेवी, मैं आपको नमस्कार करता हूं । आपको मेरे पैरोंका स्पर्श होगा, इसलिए आप मुझे क्षमा करें ।
भूमिको प्रार्थना कर, ‘समुद्रवसने देवी...’ श्लोक बोलकर भूमिपर पैर रखनेसे रात्रिके समय तमोगुणसे दूषित देहमें प्रवाहित कष्टदायक स्पंदनोंका भूमिमें विसर्जन होनेमें सहायता होती है ।’
स्नानसे पूर्व जलदेवतासे की जानेवाली प्रार्थना
हे जलदेवता, आपके पवित्र जलसे मेरे स्थूलदेहके चारों ओर आया रज-तमका काला आवरण नष्ट होने दें । बाह्यशुद्धि समान मेरा अंतर्मन भी स्वच्छ एवं निर्मल होने दें ।
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ।।
अर्थ : हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु एवं कावेरी, आप समस्त नदियां मेरे स्नानके जलमें आएं ।
भोजन करते समय निम्न प्रकारसे प्रार्थना कर श्लोक बोलें -
प्रार्थना : ‘हे भगवान, इस अन्नको मैं आपका प्रसाद मानकर ही ग्रहण कर रहा / रही हूं । इस प्रसादसे मुझे शक्ति एवं चैतन्य मिलने दें ।’
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ।।
अर्थ : अन्नसे पूर्ण, सदा परिपूर्ण रहनेवाली, शंकरको प्रिय, हे पार्वतीमाता, ज्ञान, वैराग्य एवं सिद्धिके लिए हमें भिक्षा दो ।
सायंकालमें की जानेवाली प्रार्थना
सायंकालमें पूजाघर, देवता एवं तुलसीके समीप दीपक जलाकर श्लोक बोलें ।
‘शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुखसंपदाम् ।
मम बुद्धिप्रकाशं च दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ।।’
अर्थ : हमारा शुभ करनेवाली, कल्याण करनेवाली, हमें आरोग्य एवं सुखसंपदा प्रदान कर, बुद्धिको शुद्ध करनेवाली हे दीपज्योति, आपको हमारा नमस्कार है ।
इस श्लोकद्वारा दीपककी स्तुतिसे अनिष्ट शक्तियोंको भगानेका कार्य किया जाता है ।’
स्तोत्रपाठसे निर्माण होनेवाले सात्त्विक स्पदंनोंसे घरकी शुद्धि होती है । इससे अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट भी न्यून होता है ।
रात्रि सोनेसे पूर्व की जानेवाली प्रार्थना
संपूर्ण दिनमें किए समस्त कर्मोंको ईश्वरको अर्पण कर, उनके चरणोंमें कृतज्ञता व्यक्त करें । इसीके साथ अनिष्ट शक्तियोंसे संरक्षणहेतु अपने चारों ओर सुरक्षाकवच निर्माण होनेके लिए प्रार्थना करें ।
पढाई करते समय की जानेवाली प्रार्थना
पढाई आरंभ करनेसे पूर्व मन ही मन श्रीगणेश-वंदना एवं प्रार्थना करें, ‘हे श्रीगणेश, आप विघ्नहर्ता एवं बुद्धिदाता हैं । मेरी पढाईमें सर्व प्रकारकी बाधाओं को दूर करनेकी कृपा करें । मेरी पढाई अच्छी होनेके लिए आप मुझे सुबुद्धि एवं शक्ति प्रदान करें ।’
तदुपरांत मन ही मन श्री सरस्वती-वंदना एवं प्रार्थना करें, ‘श्री शारदादेवी, आप साक्षात विद्याकी देवी हैं । मेरी पढाई अच्छी होनेके लिए आप मेरा मार्गदर्शन करें ।
पढाई पूर्ण होनेपर कृतज्ञता व्यक्त करें - ‘हे ईश्वर आपकी कृपासे ही पढाई योग्य ढंगसे हो पाई ।

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