Tuesday, February 21, 2012

माघ पूर्णिमा


हमारे शास्त्रों में माघ पूर्णिमा की बड़ी भारी महिमा बताई गयी है... माघ पूर्णिमा को पृथ्वी का दुर्लभ दिन माना गया है... ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर स्वयं भगवान नारायण गंगाजल में निवास करतें है । इस पावन घड़ी में कोई गंगाजल का स्पर्शमात्र भी कर दे तो उसे बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है ।

इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज मौजूद रहता है, देवताओं का यह तेज पाप का शमन करने वाला होता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व जब आकाश में पवित्र तारों का समूह मौजूद हो उस समय नदी में स्नान करने से घोर पाप भी धुल जाते हैं। माघ पूर्णिमा के विषय में कहा जाता है कि जो व्यक्ति तारों के छुपने के पूर्व स्नान करते हैं उन्हें उत्तम फल की प्राप्ति होती है। जो तारों के छुपने के बाद पर सूर्योदय के पूर्व स्नान करते हैं उन्हें माध्यम फल की प्राप्ति होती।

इसलिऐ इस पावन पर्व पर "ओम नमः भगवते वासुदेवाय नमः" का जाप करते हुए स्नान और दान करना चाहिए । माघ पूर्णिमा के दिन स्नान करने वाले पर भगवान विष्णु कि असीम कृपा रहती है। सुख-सौभाग्य, धन-संतान कि प्राप्ति होती है इसलिए माघ स्नान पुण्यशाली माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि कलयुग की शुरुआत माघ पूर्णिमा के दिन से ही हुई थी। इसलिए इस पूर्णिमा पर स्नान करने से कलियुग के सारे पाप धुल जाते हैं। साथ ही दान कर्म पुण्यदायी होता है।

इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्व होता है। गरीबो को भोजन, वस्त्र, गुड, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक होता है।

प्रयाग में माघ महीने को कल्पवास में बीताने की पंरपरा सदियों से चली आ रही है... जिसका विश्राम माघी पूर्णिमा के स्नान के साथ होता है । इसलिए इस दिन प्रयाग में स्नान करने से लाख गुणा फल की प्राप्ति होती है, क्योंकि यहां गंगा और यमुना का संगम होता है। गंगा नदी में स्नान करने से हजार गुणा फल की प्राप्ति होती है। अन्य नदियों और तालाबों में स्नान करने से सौ गुणा फल की प्राप्ति होती है। इस पुण्य दिवस पर अगर आप प्रयाग में स्नान नहीं कर पाते हैं तो जहां भी स्नान करें वहां पुण्यदायिनी प्रयाग का मन ही मन ध्यान करके स्नान करना चाहिए।

संगम स्थल पर एक मास तक कल्पवास करने वाले तीर्थयात्रियों के लिए यह तिथि विशेष पर्व है। माघी पूर्णिमा को एक मास का कल्पवास पूर्ण हो जाता है। इस पुण्य तिथि को सभी कल्पवासी सुबह गंगा स्नान कर गंगा माता की आरती और पूजा करते हैं तथा अपनी-अपनी कुटियों में आकर हवन करते हैं। फिर साधु संन्यासियों तथा ब्राह्मणों एवं भिक्षुओं को भोजन कराकर स्वयं भोजन करते हैं। इस प्रकार विधि-विधान से पूजा-अर्चना, स्नान तथा दान करने के बाद कल्पवासी अपने घरों को जाते हैं।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय... ॐ नमः शिवाय...

No comments:

Post a Comment