Tuesday, February 21, 2012

ऐसे शुरू हुई मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने की परंपरा


देश के कई भागों में मकर संक्राति के मौके पर नये चावल की खिचड़ी बनाकर सूर्य देव एवं कुल देवता को प्रसाद स्वरूप भेट करने की परंपरा है। लोग इस दिन एक दूसरे के घर खिचड़ी भेजते हैं और सुख शांति की कामना करते हैं। इस प्रथा के पीछे एक कारण यह है कि भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि का आधार सूर्य देव को माना गया है। इसलिए सूर्य का आभार प्रकट करने के लिए नये धान से पकवान एवं खिचड़ी बनाकर सूर्य देवता को भोग लगाते हैं।

मकर संक्राति की खिचड़ी
खिचड़ी तो यू भी कई दिन घरों में बनती है लेकिन मकर संक्राति की खिचड़ी का स्वाद अनुपम होता है। मकर संक्राति की खिचड़ी नये चावल, उड़द की दाल, मटर, गोभी, अदरक, पालक एवं अन्य तरह की सब्जियों को मिलाकर तैयार की जाती है। इस खिचड़ी में आस्था का स्वाद भी मिला होता है जो अन्य दिनों की खिचड़ी में नहीं होता है। इस तरह सब्जियों को मिलाकर खिचड़ी बनाने की परम्परा की शुरूआत करने वाले बाबा गोरखनाथ थे। ऐसी मान्यता है कि बाबा गोरखनाथ भगवान शिव के अंश हैं। इसलिए इनके द्वारा शुरू की गयी परम्परा लोग श्रद्घा पूर्वक निभा रहे हैं।

बाबा गोरखनाथ की खिचड़ी
खिलजी के आक्रमण के समय नाथयोगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। ऐसे में गोरखनाथ बाबा ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी और इस व्यंजन को खिचड़ी नाम दिया। गोरखनाथ के प्रयास से खिलजी के आतंक से मुक्ति मिली और मकर संक्राति विजय दर्शन पर्व के रूप में जाना जाने लगा और खिचड़ी को विजय का प्रतीक माना गया। उसी समय से मकर संक्राति पर देवताओं को खिचड़ी अर्पित करके प्रसाद स्वरूप इसे खाने की प्रथा शुरू हुई। गोरखपुर में मकर संक्राति के दिन खिचड़ी मेला आरम्भ होता है। इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है इसके बाद लोगों में प्रसाद बॉटा जाता है।

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